6G Testing 2028: AI बदलेगा नेटवर्क की तस्वीर, स्पीड और कॉल क्वालिटी में फिर से क्रांति
“6G testing 2028” — यह शब्द अभी तकनीकी जगत में सुनने में भविष्य की उम्मीद लगती है, लेकिन इसके पीछे काम जो हो रहा है वह इस भविष्य को चिरकालीन बना सकता है। 5G की सीमाओं को पार करते हुए 6G को सिर्फ “एक और G अपग्रेड” नहीं माना जा रहा — बल्कि एक AI-native नेटवर्क क्रांति के रूप में देखा जा रहा है। यह लेख उसी दृष्टिकोण पर आधारित है: क्या वाकई 2028 तक 6G परीक्षण (testing) संभव है, AI किस तरह नेटवर्क की तस्वीर बदल देगा, और भारत इस दौड़ में कहाँ खड़ा है।
प्रस्तावना: 5G से 6G — स्पीड से आगे “इंटेलिजेंस” की छलांग
5G ने हाई-स्पीड मोबाइल ब्रॉडबैंड, अल्ट्रा-लो लेटेंसी और मशीन-टू-मशीन कनेक्टिविटी की धारा तेज़ की। पर 6G का वादा ‘अधिक’ की सीमित परिभाषा से परे है। 6G का मूल ताना-बाना AI-native होगा—अर्थात नेटवर्क की हर परत (एयर इंटरफेस, RAN, कोर, सर्विस लेयर) में AI/ML का जन्मजात समावेश। उद्देश्य यह कि नेटवर्क किसी स्थिर नियम-पुस्तिका पर नहीं, बल्कि रीयल-टाइम डेटा, रेडियो वातावरण और उपयोगकर्ता-व्यवहार को समझकर अपने को गतिमान रूप से अनुकूल करे। एरिक्सन और नोकिया जैसे शीर्ष अनुसंधान केंद्रों ने बार-बार रेखांकित किया है कि 6G में AI-native air interface और ज़ीरो-टच ऑटोमेशन जैसी अवधारणाएँ केंद्रीय होंगी—यही कारण है कि स्पीड और कॉल क्वालिटी दोनों की ‘कंसिस्टेंसी’ 6G का बड़ा वादा बन सकती है।
इस बदलाव को समझने का सहज तरीका है—यदि 5G ने हमें तेज़ सड़क दी, तो 6G उस सड़क पर चलने वाली ‘स्वचालित, स्वयं सीखने वाली ट्रैफिक व्यवस्था’ है। अब केवल पीक थ्रूपुट नहीं, बल्कि भीड़भाड़ के समय, बड़े आयोजनों, मल्टी-सेल हैंडओवर और जटिल नेटवर्क टोपोलॉजी में भी गुणात्मक अनुभव को स्थिर रखना लक्ष्य होगा। AI-सक्षम बीमफॉर्मिंग, स्मार्ट संसाधन आवंटन और इंटरफेरेंस मैनेजमेंट का संगम कॉल ड्रॉप्स, जिटर और पैकेट लॉस को व्यावहारिक रूप से नीचे ला सकता है।
क्या सचमुच 2028 में 6G की टेस्टिंग? टाइमलाइन की हकीकत
यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या 6G testing 2028 महज़ एक उत्साही अनुमान है या ठोस रोडमैप पर टिका हुआ दावा। समयरेखा का धुरी-बिंदु 3GPP है, जो मोबाइल पीढ़ियों के तकनीकी मानक तय करता है। 3GPP की सार्वजनिक सामग्रियों और विशेषज्ञ ब्लॉग में 6G के लिए 2024-25 को आरंभिक अध्ययन/रिक्वायरमेंट चरण के रूप में चिन्हित किया गया है; इसके बाद आने वाले रिलीज़—विशेष तौर पर Release-21—में 2028 के आसपास 6G के शुरुआती स्पेसिफिकेशंस को परिपक्व रूप देने का लक्ष्य दिखता है। इसका तात्पर्य यह नहीं कि 2028 में ही कमर्शियल लॉन्च हो जाएगा, पर यह अवश्य संकेत है कि इस साल व्यापक ट्रायल्स/फील्ड-टेस्टिंग संभव हो सकती है और 2030 के आसपास प्रारंभिक वाणिज्यिक सेवाओं की राह खुलेगी।
भारत-केंद्रित संकेत और भी उत्साहजनक हैं। स्वीडिश दिग्गज Ericsson ने भारत में अपना समूचा टेलीकॉम गियर—आगे चलकर 6G उपकरण भी—देश के भीतर बनाने का ऐलान किया और यह भी जोड़ा कि 2028 तक 6G ट्रायल्स की उम्मीद है। यह उद्योग की उस व्यापक सहमति से मेल खाता है जो 2028 को 6G मानकीकरण-मील के पत्थर और बड़े फील्ड-ट्रायल्स के संभावित वर्ष के रूप में देखती है।

ITU-R का IMT-2030: 6G के लिए “ग्लोबल कम्पास”
मानकीकरण में वैश्विक समन्वय की रीढ़ ITU-R है। ITU-R ने IMT-2030 फ्रेमवर्क आगे बढ़ाते हुए 6G के लिए प्रयोज्य लक्ष्यों, उपयोग-परिदृश्यों और क्षमताओं का व्यापक ढांचा दिया है। यह वही संस्था है जिसने 2G से लेकर 5G (IMT-2020) तक की पीढ़ियों को वैश्विक मान्यता दिलाई। आज जब 6G पर समूची दुनिया विचार कर रही है, ITU-R का यह फ्रेमवर्क देशों और कंपनियों को एक साझा भाषा देता है—किस तरह की क्षमताएँ चाहिए होंगी, किन उपयोग-केसों पर ध्यान देना चाहिए और स्पेक्ट्रम-नीति व सुरक्षा-स्थायित्व के मानकों का स्वरूप क्या होगा।
IMT-2030 की यही रूपरेखा 3GPP के तकनीकी मानकों से जुड़कर ‘नीति से तकनीक’ और ‘तकनीक से बाज़ार’ तक का रास्ता बनाती है। यानी एक तरफ ITU-R की मंज़िलें, दूसरी तरफ 3GPP की टेक्निकल स्पेसिफिकेशंस—और इनके बीच उद्योग, सरकारें और शोध संस्थान—यह तिकोना 6G का वास्तविक आधार है।
AI-native 6G: स्पीड, कॉल क्वालिटी और “कंसिस्टेंसी” की नई कहानी
6G की सबसे चर्चित विशेषता स्पीड है—पर असल क्रांति कंसिस्टेंसी में होगी। 5G में भी आप 1 Gbps देखते हैं, पर भीड़ में, स्टेडियम में, मेट्रो की सुरंगों में, भारी इंटरफेरेंस में अनुभव गिरता है। 6G का AI-native तंत्र इस गिरावट को रोकने के लिए जन्मजात रूप से बनाया जाएगा। एरिक्सन के तकनीकी पन्ने बताते हैं कि 6G में AI-workloads नेटवर्क के जिस हिस्से में आर्थिक/तकनीकी रूप से सबसे समझदारीपूर्ण हों, वहीं निष्पादित किए जाएँगे—यानी एज, RAN या कोर; इसका लाभ संसाधन आवंटन की दक्षता और ऑपरेशनल लागत में कमी के रूप में मिलेगा। यही दक्षता अंततः उपभोक्ता-स्तर पर स्थिर थ्रूपुट और साफ़-सुथरी कॉल क्वालिटी बनाती है।
नोकिया बेल लैब्स की AI-native air interface पर शोध-सामग्री इस समझ को और आगे बढ़ाती है। उनके अनुसार रेडियो स्वयं-सीखने वाले हो सकते हैं, जो एक-दूसरे से और अपने परिवेश से सीखते हुए चैनल परिस्थितियों, डिवाइस क्षमताओं और एप्लीकेशन मांगों के अनुसार ट्रांसमिशन स्कीम्स को गतिमान रूप से अनुकूल करें। इसका मतलब यह कि एयर-इंटरफेस स्तर पर ही “इंटेलिजेंस” काम करेगी—जो आज तक प्रायः उच्चतर लेयर्स में सीमित रही है। वॉइस/वीडियो कॉल की स्पष्टता, कम ड्रॉप, स्मूद हैंडओवर—ये सब इसी ‘बुद्धिमान रेडियो’ का प्रतिफल हो सकते हैं।
भारत की चाल: Bharat 6G Vision, टेस्टबेड्स और ग्लोबल तालमेल
भारत सरकार ने मार्च 2023 में Bharat 6G Vision Document जारी कर 2030 तक 6G में नेतृत्व का लक्ष्य रखा। 2025 में प्रकाशित आधिकारिक अपडेट्स इस बात की पुष्टि करते हैं कि विज़न के अनुरूप टेस्टबेड्स, R&D फंडिंग और 100-लैब जैसी पहलें गति पकड़ चुकी हैं। यह केवल ‘प्रतीकात्मक’ नहीं है; उद्देश्य यह है कि भारत 6G तकनीक के डिज़ाइन-डेवेलप-डिप्लॉय के हर चरण में हिस्सेदार बने, न कि केवल उपभोक्ता रह जाए।
इस बीच, Bharat 6G Alliance (B6GA) के जरिये अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी गहरा हुआ है। हालिया रिपोर्टिंग बताती है कि B6GA ने नौ वैश्विक निकायों के साथ Delhi Declaration पर हस्ताक्षर किए, जो 6G इकोसिस्टम में सुरक्षा, ओपननेस, लचीलापन, समावेशन और टिकाऊपन जैसे मूल्यों पर सहमति बनाता है। ऐसी घोषणाएँ संकेत देती हैं कि भारत मानकीकरण की बहुपक्षीय मेज़ पर सक्रिय स्वर में उपस्थित है।
अकादमिक मोर्चे पर IIIT नवा रायपुर और TEC का गठजोड़, 6G सेल-फ्री कम्युनिकेशन जैसे उभरते क्षेत्रों पर कार्य, और मानकीकरण मंचों (3GPP, ITU-R/-T) में सहभागिता—ये सब मंथन को प्रांतीय सीमाओं से बाहर राष्ट्रीय इकोसिस्टम तक फैलाते हैं। यह साझेदारी बताती है कि 6G के प्रयोगशाला से उद्योग और फिर बाज़ार तक जाने की श्रंखला भारत में बहु-केंद्रित रूप ले रही है।
2028 में होने वाली टेस्टिंग वास्तव में क्या होगी?
जब हम 6G testing 2028 कहते हैं, तो उसकी परतें समझना ज़रूरी है। सबसे पहले, 3GPP रिलीज़ की परिपक्वता 2028 के आसपास 6G की ‘पहली कट’ स्पेसिफिकेशंस का संकेत देती है—यानी ऑपरेटर और वेंडर इसमें संरेखित होकर व्यापक फील्ड-ट्रायल्स कर सकते हैं। दूसरी परत, डिजिटल ट्विन और क्लाउड-आधारित सिमुलेशन प्लेटफॉर्म की है, जो पूरे शहर-स्तरीय नेटवर्क को वर्चुअली रचकर वास्तविक परिस्थितियों के निकट परीक्षण की सुविधा देते हैं; इससे फील्ड में उतरने से पहले ही नेटवर्क के व्यवहार को समझना संभव हो जाता है। तीसरी परत, मल्टी-वेंडर इंटरऑपरेबिलिटी और डिवाइस-इकोसिस्टम की है—जहाँ 6G प्रोटोकॉल्स और रेडियो फीचर्स हैंडसेट, मॉड्यूल और इंडस्ट्रियल गेटवे जैसे उपकरणों के साथ मिलकर “एंड-टू-एंड” अनुभव बनाते हैं। इन सबकी परिणति 2028-29 में ट्रायल्स की तेज़ी और 2030 के आसपास वाणिज्यिक सेवाओं की शुरुआती झलक में देखी जा सकती है।
भारत-विशेष परिप्रेक्ष्य में, ‘मेक-इन-इंडिया’ का 6G उपकरण निर्माण-लक्ष्य और ऑपरेटर-वेंडर विमर्श इस टेस्टिंग परत को स्थानीय संदर्भ देता है। एरिक्सन का 2028 ट्रायल-संकेत, IMC जैसे मंचों पर 6G-फोकस, और B6GA-कूटनीति—ये सब मिलकर यह स्थापित करते हैं कि भारत केवल दर्शक नहीं, मंच का सह-निर्माता है।
स्पीड बनाम क्वालिटी: 6G किस तरह संतुलन साधेगा
6G के बारे में अक्सर “Tbps स्पीड” जैसी सुर्खियाँ आती हैं, पर ITU-R/3GPP की भाषा अधिक सुस्पष्ट है—वे ‘किसी एक नंबर’ से ज़्यादा क्षमताओं और उपयोग-परिदृश्यों को परिभाषित करते हैं। इसका कारण स्पष्ट है: वास्तविक दुनिया में उपयोगकर्ता-अनुभव केवल पिक स्पीड पर नहीं टिकता, बल्कि औसत थ्रूपुट, लेटेंसी, जिटर, पैकेट लॉस और हैंडओवर-स्थिरता पर निर्भर करता है। 6G का AI-native ढांचा इन्हीं मीट्रिक्स को रीयल-टाइम निर्णय के ज़रिए बेहतर करता है—भीड़भाड़ में भी चैनल और बीम का बुद्धिमान आवंटन, डिवाइस-विविधता के बावजूद स्थिर परफॉर्मेंस, और एप-डिमांड (जैसे XR/होलोग्राफिक कॉल) के अनुरूप QoS/QoE।
यहाँ एक ऐतिहासिक तुलनात्मक संदर्भ मददगार है। 3G से 4G और 4G से 5G में हर संक्रमण में ‘डिकेडल पैटर्न’ दिखा—तकनीकी मानकों की परिपक्वता, चुनिंदा बाज़ारों में शुरुआती तैनाती और फिर वैश्विक स्केल-अप। 6G के मामले में 2028 की टेस्टिंग और 2030 के आसपास कमर्शियल विंडो इसी पैटर्न का तार्किक विस्तार है—हां, इस बार AI-native आयाम इसे और तेज़ व जटिल भी बनाते हैं।

सुरक्षा, भरोसा और पारदर्शिता: AI-native का संवेदनशील आयाम
AI-native नेटवर्किंग का मतलब है कि महत्वपूर्ण निर्णय—किस यूज़र को कितना संसाधन, किस बीम को किस दिशा में, किस हैंडओवर पर स्विच—अक्सर AI मॉडल लेते हैं। इससे सुरक्षा, डेटा गोपनीयता और एक्सप्लेनेबिलिटी का प्रश्न सामने आता है। 3GPP ने 2025 के अपडेट्स में यह स्पष्ट किया है कि वे नेटवर्क-व्यापी डेटा कलेक्शन, AI/ML मॉडल मैनेजमेंट और मानक-आधारित तंत्र पर काम कर रहे हैं ताकि ऑपरेटर AI को जिम्मेदार तरीके से तैनात कर सकें। यह भरोसा-आधारित दृष्टिकोण 6G में उपभोक्ता-विश्वास के लिए निर्णायक होगा।
भारत ने भी इस विमर्श में सक्रियता दिखाई है—सरकारी व नीति-संस्थानों का ज़ोर AI-नेटिव टेलीकॉम दिशा-निर्देशों, मानकीकरण और ग्लोबल सहयोग पर रहा है। B6GA के बहुपक्षीय करार और IMC जैसे मंचों पर नीतिगत घोषणाएँ बताती हैं कि 6G के सुरक्षा-स्थायित्व-समावेशन जैसे मूल्यों पर भारत वैश्विक सहमति गढ़ रहा है।
आर्थिक गणित और उद्योग रणनीति
6G केवल तकनीकी छलांग नहीं, एक आर्थिक गणित भी है। AI-native नेटवर्क में ऑटोमेशन और ओपेक्स-कटौती का वादा है—ज़ीरो-टच ऑपरेशंस, प्रिडिक्टिव मेंटेनेंस और स्मार्ट एनर्जी-मैनेजमेंट से नेटवर्क चलाने की लागत घट सकती है। एरिक्सन के अनुसार AI-workloads की लोकेशन-अवेयर तैनाती ‘कास्ट-बेनिफिट’ के अनुपात में होगी, जिससे ऑपरेटर नई सेवाओं—जैसे AI-as-a-Service—से राजस्व अवसर तलाश सकते हैं। पर साथ ही शुरुआती कैपेक्स, डिवाइस-इकोसिस्टम की परिपक्वता और स्पेक्ट्रम-नीति का स्पष्ट होना अनिवार्य है।
भारत का ‘मेक-इन-इंडिया’ और PLI-आधारित निर्माण-परिदृश्य यहाँ निर्णायक सिद्ध हो सकता है। यदि 6G रेडियो, एंटेना, ऑप्टिकल बैकहौल और कोर-नेटवर्क हार्डवेयर/सॉफ्टवेयर का बड़ा हिस्सा देश में विकसित-निर्मित होता है, तो न केवल लागत प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, बल्कि भारत वैश्विक सप्लाई-चेन का विश्वसनीय केंद्र बन सकता है। 2028 ट्रायल्स-समयरेखा के संकेत इसी रणनीति को और सुदृढ़ करते हैं।
मैदान से नीतिगत मंच तक: IMC, अकादमिक गठजोड़ और स्टार्टअप्स
India Mobile Congress जैसे मंच अब ‘शोकेस’ भर नहीं रहे; वे नीतिगत विमर्श, स्टार्टअप-कनेक्ट और मानकीकरण-सहमति के इकोसिस्टम बन चुके हैं। 2025 के IMC में 6G और सैटेलाइट इंटरनेट का विशेष फोकस इसी क्रम को आगे बढ़ाता है। उधर IIIT नवा रायपुर-TEC जैसे गठजोड़, 6G सेल-फ्री कम्युनिकेशन जैसे पथप्रदर्शी अनुसंधान, और DST/TTDF-समर्थित परियोजनाएँ इस बात का सबूत हैं कि देश-भर में 6G की बुनियादी शोध-परत सुदृढ़ हो रही है।
पाठक के लिए इसका मायना: कल की कॉल, आज से बेहतर
उपभोक्ता-स्तर पर 6G का सबसे दिखाई देने वाला असर कॉल क्वालिटी और कंसिस्टेंट स्पीड में होगा। यदि आज भीड़ में वीडियो कॉल फ्रीज़ होती है या वॉइस में ‘रोबोटिक’ टूटन सुनाई देती है, तो 6G का AI-native तंत्र इन समस्याओं को जड़ से पकड़ने का वादा करता है। स्मार्ट हैंडओवर, इंटरफेरेंस का चुस्त नियंत्रण और नेटवर्क-व्यापी संसाधन प्रबंधन मिलकर अनुभव को स्थिर बना सकते हैं—चाहे आप स्टेडियम में हों, हाई-राइज़ के भीतर या मेट्रो की सुरंग में। साथ ही 6G के स्पेस-टेरिस्ट्रियल इंटीग्रेशन—यानी सैटेलाइट और भू-आधारित नेटवर्क का संयोजन—से उन क्षेत्रों में भी सेवाएँ पहुँचना संभव होगा जहाँ अभी कवरेज धुंधला है। यह सब ITU-R के फ्रेमवर्क में संकल्पित ‘उबीक्विटस कवरेज’ की दिशा में वास्तविक कदम होंगे ।
निष्कर्ष: 2028—टेस्टिंग की दहलीज़, 2030—कमर्शियल की झलक
तथ्यों का संतुलित सार यही कहता है—6G testing 2028 कोई खोखला नारा नहीं बल्कि रोडमैप-आधारित यथार्थ है। ITU-R के IMT-2030 ने दिशा तय कर दी, 3GPP का टाइमलाइन-मंथन 2028 को तकनीकी परिपक्वता के माइलस्टोन के रूप में रेखांकित करता है, और उद्योग-सरकार-अकादमिक के संयुक्त कदम इसे ज़मीन पर उतारने की तैयारी में हैं। भारत का Bharat 6G Vision इस पूरी कथा में देश को एक सक्रिय सह-निर्माता की भूमिका देता है—जहाँ नीति, निर्माण, मानकीकरण और शोध एक-दूसरे से हाथ मिलाकर 2030 के आसपास आने वाली 6G दुनिया की बुनियाद रख रहे हैं। स्पीड यहाँ कहानी का केवल पहला वाक्य है; वास्तविक कथा AI-native क्वालिटी और कंसिस्टेंसी की है—जहाँ हर कॉल, हर स्ट्रीम, हर कनेक्शन अपनी ‘स्मार्टनेस’ से पहचाना जाएगा।
FAQ
1) क्या 6G 2028 में लॉन्च हो जाएगा?
नहीं—2028 को उद्योग एक टेस्टिंग/स्पेसिफिकेशन-माइलस्टोन के रूप में देखता है। 3GPP रोडमैप के अनुसार 6G की शुरुआती तकनीकी स्पेसिफिकेशंस 2028 के आसपास परिपक्व हो सकती हैं, जिसके बाद व्यापक ट्रायल्स संभव होंगे; कमर्शियल शुरुआत 2030 के आसपास ज्यादा यथार्थवादी मानी जाती है।
2) 6G में AI इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
क्योंकि 6G AI-native होगा—एयर-इंटरफेस से लेकर RAN और कोर तक इंटेलिजेंस बिछी होगी। एरिक्सन और नोकिया के अनुसार यह मॉडल संसाधन आवंटन, हैंडओवर, बीमफॉर्मिंग और ऑपरेशन-ऑटोमेशन को रीयल-टाइम में अनुकूल बनाकर स्पीड और कॉल क्वालिटी की कंसिस्टेंसी बढ़ाता है।
3) भारत 6G की दौड़ में कहाँ है?
भारत ने 2023 में Bharat 6G Vision जारी किया और 2025 तक टेस्टबेड्स, फंडिंग व मानकीकरण-भागीदारी आगे बढ़ी है। B6GA के बहुपक्षीय करार और IMC जैसे मंचों की घोषणाएँ भारत की सक्रिय वैश्विक भागीदारी दिखाती हैं।
4) क्या 6G में स्पीड 5G से कई गुना होगी?
स्पीड बढ़ेगी, पर ITU-R/3GPP किसी एक ‘जादुई नंबर’ की बजाय क्षमताओं और उपयोग-परिदृश्यों को परिभाषित करते हैं। असल अंतर स्थिर अनुभव में दिखेगा—भीड़ में भी बेहतर थ्रूपुट, कम लेटेंसी और साफ़ कॉल्स।
5) 2028 में भारत में 6G ट्रायल्स की संभावना क्या है?
उद्योग संकेतों के अनुसार 2028 तक भारत में 6G ट्रायल्स संभव माने जा रहे हैं; एरिक्सन ने भारत में संपूर्ण उपकरण निर्माण और 2028 ट्रायल-अनुमान की बात रखी है। अंतिम निर्णय रेगुलेटरी और मानकीकरण-प्रगति पर निर्भर करेंगे।



