quiet supersonic aircraft: अमेरिका के NASA-लॉकहीड मार्टिन के X-59 ने पहली उड़ान पूरी की
नई दिल्ली: अमेरिकी अंतरिक्ष एवं वायुसेना अनुसंधान एजेंसी NASA के सहयोग से Lockheed Martin द्वारा विकसित प्रयोगात्मक जेट विमान X-59 (जिसे “Quiet Supersonic Technology” कहा गया है) ने अपने पहले परीक्षण उड़ान को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इस विमान का उद्देश्य है सुपरसोनिक यानी ध्वनि की गति से अधिक गति से उड़ान भरते समय पारंपरिक “सोनिक बूम” (ध्वनि विस्फोट) को काफी हद तक कम करना — जिससे भविष्य में जनता के ऊपर से सुपरसोनिक कम शोर वाली उड़ानों को संभव बनाया जा सके।“quiet supersonic aircraft” क्यों एक मील-पत्थर है, इसके तकनीकी पहलू क्या हैं, किन चुनौतियों का सामना अभी बाकी है, और भारत एवं वैश्विक वायुयान उद्योग पर इसका क्या असर हो सकता है।
परिचय
जब हम “quiet supersonic aircraft” की बात करते हैं, तो यह सिर्फ एक उड़ान नहीं बल्कि एक ध्वनि-प्रदूषण, वायुयान-उद्योग और वाणिज्यिक यात्रा की रीति बदलने वाला प्रयास है। हालाँकि पिछले दशकों में सुपरसोनिक विमान (जैसे Concorde) मौजूद रहे हैं, लेकिन उनका मुख्य अवरोध था भूमि के ऊपर उड़ान भरते समय बहुत तेज ध्वनि विस्फोट (sonic boom) उत्पन्न होना — जिससे पूरे नागरिक आबादी के ऊपर उड़ानों पर पाबँदी लग गई थी।
अब, NASA-Lockheed Martin की टीम ने अपने X-59 विमान के माध्यम से “quiet supersonic aircraft” की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाई है। इस प्रयास से निष्कर्ष निकल सकता है कि भविष्य में ऊँचाई-ऊपर तथा ज्यादा गति पर उड़ानें संभव होंगी जो अधिक तेज होंगी, मगर कम शोर उत्पन्न करेंगी।
“quiet supersonic aircraft” के पीछे का तकनीकी विचार
X-59 को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि जब यह ध्वनि की गति से ऊपर चले, तब जमीन पर रहने वालों को पारंपरिक तेज धमाके की आवाज न सुनाई दे — बल्कि बहुत कम “थम्प” जैसी आवाज (sonic thump) सुनाई दे।
इसका निर्माण निम्नलिखित प्रमुख तकनीकी विशेषताओं पर आधारित है:
- लंबी, नुकीली नाक (nose) जो शॉक वेव्स को फैलाती है और उनसे उत्पन्न ध्वनि को कम करती है।
- इंजन को विमान की पुढ़िया (fuselage) के ऊपर अथवा विशेष पोजिशन में रखा है ताकि ध्वनि का मार्गभूमि पर न्यूनतम प्रभाव डाले।
- विमान को लगभग 55,000 फीट की ऊँचाई पर उड़ान भरने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जहाँ हवा पतली होती है और ध्वनि विस्तार कम होता है।
- इस उड़ान का प्रमुख उद्देश्य है “quiet supersonic aircraft” के रूप में व्यवहार्यता का परीक्षण — कि क्या वाकई ध्वनि-विस्फोट को नियंत्रित किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, पहली उड़ान में X-59 ने लगभग 12,000 फीट की ऊँचाई पर उड़ान भरी और लगभग 240 मील प्रति घंटा (≈ 370 किमी/घं.) की गति बनाई। आगामी परीक्षणों में गति और ऊँचाई बढ़ाई जाएगी।

X-59 की पहली उड़ान: क्या हुआ?
28 अक्टूबर 2025 को कैलिफोर्निया के पाम्डेल (Palmdale) में विमान ने अपने पहले परीक्षण उड़ान को सफलतापूर्वक पूरा किया।
लॉकहीड मार्टिन के बयान के अनुसार, “The X-59 performed exactly as planned, verifying initial flying qualities and air data performance on the way to a safe landing.”
कुछ प्रमुख बिंदु:
- स्थान: U.S. Air Force Plant 42, Palmdale से उड़ान और Armstrong Flight Research Center (Edwards AFB) में लैंडिंग।
- ऊँचाई: लगभग 12,000 फीट।
- गति: करीब 240 मील/घं. (लगभग 370 किलोमीटर/घंटा) — सुपरसोनिक नहीं बल्कि प्रक्षेपण परीक्षण के लिए उपयुक्त गति।
- उड़ान का मुख्य उद्देश्य था एयरडेटा और हैंडलिंग की जाँच, न कि तत्काल सुपरसोनिक गति तक पहुँचना।
NASA के कार्यवाहक प्रशासक Sean Duffy ने इस घटना को “symbol of American ingenuity” कहा था।
“quiet supersonic aircraft” की पृष्ठभूमि और आज की स्थिति
1970 के दशक से अमेरिका में नागरिक सुपरसोनिक उड़ानों पर सीमाएँ लग गयी थीं, विशेष रूप से भूमि के ऊपर ध्वनि बूम (sonic boom) के कारण।
NASA की इस मिशन का नाम है QueSST (Quiet Supersonic Technology) और X-59 इस मिशन का केंद्रबिंदु है।
NASA ने कहा है कि उन्होंने 2018 से इस परियोजना में वित्तीय निवेश शुरू किया था और अब तक जिस गति से काम हुआ है, वह इस दिशा में एक ठोस कदम है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस “quiet supersonic aircraft” अवधारणा सफल होती है, तो भविष्य में वाणिज्यिक सुपरसोनिक उड़ानें — जो आज केवल महासागरीय ट्रांज़िट के लिए उपलब्ध थीं — भूमि के ऊपर भी संभव हो सकती हैं। इस तरह ट्रांस-अटलांटिक, ट्रांस-कॉन्टिनेंटल यात्रा समय में कई गुना कट सकती है।

भारत और वैश्विक विमानन उद्योग में इसे क्यों देखें?
भारत की तेजी से बढ़ती एयर सेक्टर, अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी की आवश्यकता और पर्यावरण-ध्वनि संवेदनशीलता के चलते यह “quiet supersonic aircraft” अवधारणा विशेष रूप से प्रासंगिक है।
- गति और समय की बचत : यदि ऐसा विमान वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध हो जाता है, तो मुंबई-लंदन, दिल्ली-न्यू यॉर्क जैसी लंबी दूरी की उड़ानें आज के 8-10 घंटे के मुकाबले 3-4 घंटे में पूरी हो सकती हैं।
- शोर-प्रदूषण में कमी : भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में जहाँ हवाई अड्डों के आसपास शोर-प्रदूषण एक समस्या है, कम ध्वनि उत्पन्न करने वाली उड़ानें सामाजिक स्वीकृति में मदद करेंगी।
- उद्योग-उद्यम: भारत के ओरिजन एयरलाइन, विमान निर्माता, एयरोस्पेस स्टार्ट-अप्स को इस तकनीक से जुड़ने का अवसर मिल सकता है।
- नियम-विनियमन बदलाव : “quiet supersonic aircraft” की सफलता से वायुयान नियमों में बदलाव होगा — उदाहरण स्वरूप भूमि के ऊपर सुपरसोनिक फ्लाइट्स पर लगे प्रतिबंधों में ढील मिल सकती है।
चुनौतियाँ और आगे के कदम
हालाँकि X-59 की पहली उड़ान एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन पूरे “quiet supersonic aircraft” आदर्श को वाणिज्यिक रूप से सफल बनाने के लिए कई चुनौतियाँ अभी बनी हुई हैं:
- पूर्ण सुपरसोनिक गति तक पहुँचाना – अभी तक X-59 ने सुपरसोनिक गति (यानी ध्वनि की गति से ऊपर) नहीं भरी है। आगामी परीक्षणों में Mach 1.4 (≈925 मील/घं.) की गति और 55,000 फीट जैसी ऊँचाई तक जाना लक्ष्य है।
- वाणिज्यिक लागत और व्यवसाय मॉडल – सुपरसोनिक विमान अब तक महंगे रहे हैं। इसे आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना एक बड़ी चुनौती होगी।
- नियम एवं संवेदनशीलताओं का समाधान – हॉविंग सुपरसोनिक उड़ानें आबादी-क्षेत्र के ऊपर संभव हों, इसके लिए ध्वनि, वायु प्रदूषण, सुरक्षा-नियम, एयरोडायनामिक्स आदि कई स्तरों पर संशोधन जरूरी होगा।
- तकनीकी विश्वसनीयता – विमान का लंबे-समय संचालन, रख-रखाव, इंजन दक्षता, खर्च आदि भी मापदंड होंगे।
- सामाजिक स्वीकृति – यह देखना होगा कि जब “lower boom” यानि “sonic thump” वास्तव में जमीन पर महसूस किया जाए, तो लोगों की प्रतिक्रिया क्या होती है।
निष्कर्ष
“quiet supersonic aircraft” के रूप में X-59 का परीक्षण विमान एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है। NASA-Lockheed Martin की यह पहल बताती है कि भविष्य में कम समय में तेज-गति वाली यात्राएँ संभव हो सकती हैं — वह भी कम शोर और कम ध्वनि-प्रदूषण के साथ।
हालाँकि अभी यह वाणिज्यिक उड़ान नहीं है और कई तकनीकी-विनियामक बाधाएँ दूर होनी हैं, लेकिन इस कदम का अर्थ है कि विमानन उद्योग एक नए युग में प्रवेश कर रहा है — जहाँ गति के साथ-साथ ध्वनि संवेदनशीलता, सामाजिक स्वीकृति और पर्यावरण-परिणामों को भी ध्यान में रखा जाएगा।
यह भारत सहित विश्व के अग्रणी विमानन-शासी, उद्योगधारियों और शोधकर्ताओं के लिए अवसरों की नई राह खोलता है। यदि भारत समय रहते इस तकनीक को अपनाने एवं नियामक तैयारी करने में आगे रहेगा, तो उसे वैश्विक सुपरसोनिक विमानन-दिवस की शुरुआत में स्थान मिल सकता है।
(FAQ)
Q1: “quiet supersonic aircraft” का क्या अर्थ है?
A1: इसका मतलब है ऐसा सुपरसोनिक विमान जो ध्वनि की गति से अधिक गति से उड़ सके पर जमीन पर रहने वालों को पारंपरिक “सोनिक बूम” जैसी तेज धमाका सुनाई न दे, बल्कि बहुत हल्की “थम्प” सुनायी दे।
Q2: X-59 की पहली उड़ान में सुपरसोनिक गति तो नहीं भरी गई — क्यों?
A2: सही है। परीक्षण की शुरुआत में विमान को कम गति और कम ऊँचाई पर उड़ाया गया ताकि हैंडलिंग, एयरडेटा, सुरक्षा व सिस्टम-इंटीग्रेशन को सत्यापित किया जा सके। पूरा सुपरसोनिक परीक्षण बाद में किया जाएगा।
Q3: भारत में यह तकनीक कब तक वाणिज्यिक रूप से लागू हो सकती है?
A3: इसका अनुमान अभी कहना मुश्किल है क्योंकि वाणिज्यिक सुपरसोनिक सेवा के लिए नियामकीय बदलाव, विमानन-इन्फ्रास्ट्रक्चर, लागत-प्रबंधन व सामाजिक स्वीकृति जैसी व्यापक तैयारियाँ जरूरी हैं। अगले 5-10 साल में इस दिशा में प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
Q4: क्या X-59 सिर्फ एक प्रयोगात्मक विमान है या वाणिज्यिक मॉडल बनेगा?
A4: फिलहाल X-59 एक परीक्षण विमान है, जिसका उद्देश्य है “quiet supersonic aircraft” अवधारणा को साबित करना। वाणिज्यिक मॉडल उसके बाद विकसित होंगे, यदि यह परीक्षण सफल रहा।
Q5: क्या सुपरसोनिक उड़ानें सचमुच पर्यावरण-प्रदूषण बढ़ायेंगी?
A5: इस पर अभी शोध चल रहा है। सुपरसोनिक उड़ानों में अधिक ऊर्जा-खपत हो सकती है, लेकिन यदि ध्वनि-प्रदूषण कम हो और नई पद्धतियाँ अपनाई जाएँ, तो यह संतुलन संभव है। इस प्रकार “quiet supersonic aircraft” ऐसे समाधान खोजने की दिशा में हैं।



