Mission LA 2028: भारत का ओलंपिक रोडमैप पेरिस के बाद
“Mission LA 2028” – यही अब भारत का अगला बड़ा लक्ष्य बन चुका है। 2024 Summer Olympics (पेरिस) में कुल 6 पदक जीतने के बाद भारत ने यह तय किया है कि आने वाले 2028 Summer Olympics (लॉस एंजिल्स) में सिर्फ संख्या बढ़ाना नहीं बल्कि विश्व-स्तर की प्रतिस्पर्धा में स्थायी रूप से अपनी पहचान बनाना है। पेरिस के अनुभव से मिले सबक, वर्तमान रणनीति, चुनौतियाँ, और 2028 तक भारत कैसे तैयार हो रहा है।
पेरिस 2024 से प्राप्त अनुभव और सबक
पेरिस में भारत ने एक सिल्वर और पाँच ब्रॉन्ज पदक हासिल किए, कुल 6 पदक के साथ।यह भारत का ओलंपिक इतिहास में तीसरा-सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। लेकिन इसके साथ ही यह स्पष्ट हुआ कि शीर्ष देशों से अभी भी काफी अंतर है।
विश्लेषकों ने यह भी कहा कि पेरिस में कुछ नौकरियों में सफलता मिली (शूटिंग, हॉकी, कुश्ती) लेकिन अन्य क्षेत्रों (जैसे एथलेटिक्स, बैडमिंटन) में अपेक्षा पूरी नहीं हुई।
सरकार ने इस पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए 2028 के लिए रोडमैप तैयार करना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिए: Ministry of Youth Affairs & Sports (MYAS) तथा विभिन्न राज्य-संघों ने “चिंतन-शिविर” आयोजित किए, जिसमें 2028 की योजना, प्रतिभा पहचान, स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर और कॉर्पोरेट भागीदारी पर चर्चा हुई।
इनका परिणाम यह हुआ कि अब भारत के लिए 2028 सिर्फ एक लक्ष्य नहीं, रणनीतिक मिशन बन गया है। इस से भारत की ओलंपिक यात्रा में नया क्रम शुरू होता दिख रहा है।

2028 के लिए रणनीति: क्या बदल रहा है?
प्रतिभा पहचान और विकास
भारत ने घरेलू प्रतिस्पर्धा व जिला-राज्य स्तर पर टैलेंट स्काउटिंग को गति दी है। संसद में जारी दस्तावेज़ के अनुसार, राष्ट्रीय खेल संघों (NSFs) को साफ चयन नीति, उच्च क्षमता वाले कोच-उपक्रम, और स्पोर्ट साइंस इंटीग्रेशन की जिम्मेदारी दी गई है।
इंफ्रास्ट्रक्चर और स्पोर्ट साइंस
पेरिस के बाद यह महसूस हुआ कि केवल प्रतिभा से काम नहीं चलेगा — उसे प्रशिक्षित करने के लिए विश्व-स्तरीय सुविधाएँ चाहिए। MYAS एवं राज्यों द्वारा मिलकर खेल-विज्ञान, पोषण, मानसिक प्रशिक्षण, डेटा-अनालिटिक्स जैसे घटकों पर जोर दिया जा रहा है। शिविरों में इन विषयों पर रणनीति बनाई जा रही है।
खेल चयन एवं प्राथमिकताएँ
2028 के लिए भारत ने उन खेलों पर ध्यान केन्द्रित किया है जहाँ सफलता की सम्भावना अधिक है — उदाहरण के लिए निशानेबाजी, कुश्ती, हॉकी, जैवलिन थ्रो। यह रणनीति पेरिस में मिले अनुभवों और विश्लेषणों पर आधारित है। ऐसे खेल जहाँ संसाधन कम थे या अनुभव सीमित था, वहाँ सुधार की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
केंद्र-राज्य और निजी-साझेदारी
चिंतन-शिविर में राज्यों को भी आमंत्रित किया गया और उनसे यह अपेक्षा की गई कि वे स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण केंद्र विकसित करें, प्रतिभा पहचान प्रणाली लागू करें और निजी क्षेत्र को खेल-विकास में भागीदार बनाएँ।
रणनीति के सामने चुनौतियाँ
हालाँकि रोडमैप स्पष्ट है, लेकिन राह आसान नहीं। नीचे कुछ बड़ी चुनौतियाँ हैं:
विश्व-स्तर की प्रतिस्पर्धा: दुनिया के शीर्ष राष्ट्रों ने दशक-भर से खेल-विकास में निवेश किया है। भारत को भी इसे तेजी से पूरा करना है।
संसाधनों का प्रभावी उपयोग: बजट तो बढ़ रहा है, लेकिन उसे सही दिशा में लगाना चुनौती है— कोच-प्रतिभा, प्रशिक्षण-सत्र, ग्लोबल मुकाबले सुविधाएँ शामिल हैं।
निरंतरता: एक-दो साल में सफलता नहीं मिलती; यह लंबी अवधि का खेल है। रणनीति के अनुसार अगले चार साल में निरंतर सुधार दिखाना होगा।
मानसिक एवं संरचनात्मक बदलाव: खिलाड़ी सिर्फ तकनीकी रूप से तैयार नहीं होंगे, मानसिक रूप से भी उच्च दबाव सहने योग्य होने चाहिए। इसके लिए खेल-मनोविज्ञान समेत अन्य सपोर्ट सिस्टम होना जरूरी है।
राज्य-स्तर पर घटती भागीदारी: कुछ राज्य खेल-विकास में पिछड़ते जा रहे हैं, उन्हें केंद्र-नीति के अनुरूप सक्रिय करना है।
भारत की चुनी हुई खेल-फोकस और संभावनाएँ
निशानेबाजी (Shooting)
पेरिस में भारत ने निशानेबाजी में तीन पदक हासिल किए — यह इस बात का संकेत था कि इस सेक्टर में सफलता की नींव पड़ी है। आगे के लिए इस खेल में और विशेषज्ञ प्रशिक्षक-संसाधन लाने की योजना है।
हॉकी (Men’s Hockey)
भारत के पुरुष हॉकी दल ने पेरिस में ब्रॉन्ज जीता — लगातार दूसरे ओलिंपिक में। हॉकी में इस सफलता को स्थायी बनाने के लिए युवा खिलाड़ियों को शामिल करना और अंतरराष्ट्रीय अनुभव देना प्राथमिकता में है।
कुश्ती (Wrestling)
पेरिस में युवा Aman Sehrawat ने ब्रॉन्ज जीतकर भारत के लिए अपार संभावनाएँ खोल दीं। कुश्ती में आगे टीम-स्किल, कोचिंग-इनफ्रास्ट्रक्चर तथा चयन-नीति को मजबूत करना शीर्ष प्राथमिकता है।
एथलेटिक्स (Athletics)
जहाँ भारत ने कुछ शोकेस किये — जैसे जैवलिन थ्रो में Neeraj Chopra — लेकिन समग्र प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। अतः 2028 की दिशा में एथलेटिक्स को विशेष सहायता-पैकेज मिलेगा।

2028 तक की टाइमलाइन और लक्ष्य
2025–26: राज्य-राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभा पहचान एवं प्रशिक्षण केंद्रों का विस्तार।
2026–27: अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के अनुभव बढ़ाना — विश्व-चैंपियनशिप, एशियन गेम्स आदि।
2027–28: ओलिंपिक क्वालीफाइंग तथा अंतिम तैयारी – खिलाड़ियों का पीक फॉर्म सुनिश्चित करना।
लक्षित पदक: हालांकि अभी आधिकारिक लक्ष्य घोषित नहीं हुआ, लेकिन विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को 2028 में 15–20 पदक का लक्ष्य रखना चाहिए।
निष्कर्ष
पेरिस 2024 भारत के लिए एक प्रशिक्षण Ground-Zero साबित हुआ है, जिसने दिखाया कि क्षमता है लेकिन उसे वास्तविक “विश्व-स्तर” में परिवर्तित करना बाकी है। अब भारत ने Mission LA 2028 के तहत एक दायित्व लिया है — सिर्फ पदक बढ़ाना नहीं बल्कि खेल प्रणाली को बदलना। अगर चयन नीति, प्रशिक्षण सुविधा, कोच-सपोर्ट, राज्य-केंद्र तालमेल और निजी-भागीदारी जैसी रणनीतियों को समय पर पूरा किया गया, तो भारत 2028 में एक नए मुकाम पर पहुँच सकता है।
विश्व को यह दिखने में देर नहीं लगेगी कि भारत सिर्फ प्रतिभाशाली नहीं है, बल्कि तैयार भी है।
FAQ
Q1: भारत ने पेरिस 2024 में कितने पदक जीते?
A1: भारत ने पेरिस में कुल 6 पदक जीते – एक सिल्वर व पाँच ब्रॉन्ज।
Q2: Mission LA 2028 क्या है?
A2: Mission LA 2028 भारत की रणनीति है कि अगले ओलिंपिक (लॉस एंजिल्स 2028) में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयारी करें — इसमें प्रतिभा पहचान, इंफ्रास्ट्रक्चर, खेल-विज्ञान, राज्य-केंद्र समन्वय आदि शामिल हैं।
Q3: भारत ने 2028 तक क्या प्रमुख बदलाव किये हैं?
A3: प्रमुख बदलाव हैं — चयन नीति को स्पष्ट करना, राज्य-स्तर पर प्रतिभा खोज बढ़ाना, स्पोर्ट साइंस व कोच-उपक्रम को मजबूत करना, और राज्य-केंद्र व निजी भागीदारी का नेटवर्क बनाना।
Q4: किन खेलों में भारत की सबसे बड़ी संभावनाएँ हैं?
A4: निशानेबाजी, हॉकी, कुश्ती और जैवलिन थ्रो (एथलेटिक्स) में भारत की सबसे बड़ी संभावनाएँ मानी जा रही हैं क्योंकि वहां पहले से कुछ सफलता मिली है।
Q5: क्या भारत का लक्ष्य पदक-संख्या है?
A5: अभी आधिकारिक लक्ष्य सार्वजनिक नहीं हुआ है, लेकिन विश्लेषकों का सुझाव है कि भारत को 2028 में लगभग 15–20 पदक का लक्ष्य रखना चाहिए।



